एक खास त्योहार, जब, मंगसीर बग्वाल में डूबी रही रवाईं घाटी

देहरादून, दून के जौनसार बाबर, टिहरी जिले के जौनपुर तथा उत्तरकाशी जिले की संपूर्ण रवाईं घाटी मंगसीर बग्वाल सेलिब्रेशन में डूबा रहा। शुक्रवार को असक्या पर्व, शनिवार को मुख्य होलियाल के साथ पकोड़िया पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया। शनिवार रात को मंगसीर बग्वाल की मुख्य होलियात के बाद ग्रामीण महिलाएं पर पुरूष मध्यरात्रि तक ढोल दमाऊ जैसे पारंपरिक वाद्यों के साथ पारंपरिक रासो, तांदी, धुमसू नृत्य और चौफुती खेलकर मनोरंजन करते रहे। रविवार दोपहर बाद पूरे क्षेत्र में मंगसीर बग्वाल की अंतिम होलियात खेली गयी। होलियात स्थल से नाचते गाते हुए सभी मण्डाण चौक पहुँचे जहां पर शाम तक फिर रासो तांदी और सराई नृत्य होता रहा। इस बीच अखरोट की भिरूड़ी फेंकी गयी जिसको मंगसीर बग्वाल का प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया गया। बराज होलियात में मसूरी के समीपवर्ती कॉर्न विलेज सैंजी में पर्यटक भी शामिल हुए और होलियात का आनंद लिया।

महिलाएं जंगल से बाबई घास काटकर लायी 

इसके बाद महिलाएं जंगल से बाबई घास काटकर लायी जिसको गांव की कन्याओं और महिलाओं द्वारा पूजा की गयी और फिर भाण्ड या रस्साकसी के लिए बाबई घास की विशाल रस्सी बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई। विशाल रस्सी बनने के बाद मण्डाण चौक के बीचों बीच रस्सी को रखा गया. जिसकी पूजा करने के बाद पानी में नहलाया गया और फिर इस रस्सी से महिलाओं व पुरूषों के बीच रस्साकसी में जोर आजमाइश शुरू हुई जिसको महिलाओं द्वारा जीता गया। विदित है कि बाबई घास से बनी रस्सी को नागिन के रूप में पूजा जाता है और रस्सी तैयार करने के बाद इसकी मण्डाण चौक में बाकायदा रखवाली की जाती है। पांच दिवसीय मंगसीर बग्वाल का आज तीसरा दिन था और सोमवार को कॉर्नविलेज में शाम को पांण्डव नृत्य मण्डाण आयोजित होगा तथा कोटी गांव में बड़ी भाण्ड का आयोजन होगा जिसमें हजारों ग्रामीण हर साल शामिल होते हैं।