देखिए, कहाँ मनाई जाती है.. ये खास दीपावली… क्यों मनाई जाती है…

देहरादून, मसूरी में शुक्रवार को बूढी दिवाली धूमधाम के साथ मनायी गयी। विधिवत डिबसा पूजन के साथ होलियात खेली गयी और उसके बाद लगभग पूरे दिन भर लोकनृत्य और लोकगीतों के साथ भिरूड़ी फेंकी गयी। पुरूषों व महिलाओं ने रस्साकसी खींचकर जोर आजमाईश की। विदित है कि इस त्यौहार को संपूर्ण जौनपुर, जौनसार बाबर और रवांईं घाटी में पुरानी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है जो आज पूरे क्षेत्र में असक्या पर्व के साथ शुरू हो गया है। इस सेलिब्रेशन में 30 नवंबर को मुख्य पकोड़िया पर्व, एक दिसंबर को भिरूड़ी बराज मनाया जाएगा, दो दिसंबर को भाण्ड या रस्साकसी होगी और उसके अगले दिन तीन दिसंबर को पाण्डव नृत्य मण्डाण का आयोजन किया जाएगा।

शुरूआत विधिवत डिबसा पूजन के साथ हुई

अगलाड़ यमुनाघाटी विकास मंच के तत्वाधान में मसूरी के कैम्पटी रोड़ पर पुराने चकराता टोल चौकी के सामने मंच के निर्माणाधीन भवन परिसर में बढ़ी दिवाली समारोह का आयोजन किया गया। समारोह की शुरूआत विधिवत डिबसा पूजन के साथ हुई। मंच के संरक्षक मनमोहन सिंह मल्ल, अध्यक्ष शूरवीर सिंह रावत, कोषाध्यक्ष सूरत सिंह रावत, महामंत्री जयप्रकाश राणा, उपाध्यक्ष केडी नौटियाल, बीरेंद्र सिंह राणा, दिनेश पंवार, बिरेंद्र पंवार, मेघसिंह कण्डारी आदि ने डिबसा पूजन करवाया। डिबसा पूजन में उपेंद्र थापली, गाेदावरी थापली, सीएयू के पूर्व अध्यक्ष जोतसिंह गुनसोला, पूर्व पालिकाध्यक्ष ओपी उनियाल आदि भी शामिल हुए। डिबसा पूजन के बाद महिलाओं व पुरूषों ने होलियात का आनंद लिया। देर शाम तक लोकगीतों के साथ लोकनृत्यों का आयोजन किया गया।

कई मान्यताएं हैं

विदित है कि राष्ट्रीय दीपावली के पूरे एक माह बाद संपूर्ण जौनपुर, जौनसार बाबर और रवांई घाटी में लगभग पांच दिन बूढी दिवाली पर्व मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि बीर भड़ माधोसिंह भण्डारी जब तिब्बत युद्ध जीत कर वापिस लौटे थे, तो इस खुशी में बूढी दिवाली मनायी जाने लगी । एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद जब भगवान राम वापिस लौटे थे तो इस क्षेत्र में यह खबर एक माह बाद पहुँची थी। इसलिए एक माह बाद यह त्यौहार मनाया जाने लगा था। बूढी दिवाली समारोह में मसूरी ट्रेडर्स एसोसिएशन अध्यक्ष रजत अग्रवाल सहित शहर के अनेक गणमान्य लोग भी उपस्थित रहे।