शिव के माने माहि बसे काशी शिव के माने माहि बसे काशी ……..आज बिरज में होरी रे रसिया……. झनकारो झनकारो झनकारो प्यारो लगे तेरे झनकारो…… जैसी सुमधुर कुमाऊंनी खड़ी होली, हुड़के की थाप, ढोल और नगाड़े की ताल, मसकबीन की शानदार धुन और पारंपरिक कुमाऊनी परिधान।
देहरादून। कुमाऊनी की बैठक होली के लिए इतना है काफी है। कुमाऊनी की बैठक होली अपनी लोक कला संस्कृति के लिए दुनिभर में किसी परिचय की मोहताज नही है। होली के मौके पर गढ़वाल से लेकर कुमाऊ तक आजकल बैठकों का दौर जारी है। गुरुवार को पारंपरिक परिधानों में हमारी पहचान रंगमंच के कलाकारों ने माता वैष्णो देवी गुफा योग मंदिर टपकेश्वर महादेव में एक से बढ़कर एक सुंदर होली की प्रस्तुति दी। सबसे पहले होलीयारों ने एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाया और गुड़ के प्रसाद के साथ ही उनको माला पहना करके उनका अभिनंदन किया। उसके बाद मंदिर के संस्थापक आध्यात्मिक गुरु आचार्य विपिन जोशी ने सभी का स्वागत किया। इस दौरान सभी ने माता वैष्णो देवी और भगवान श्री टपकेश्वर महादेव के दर्शन कर उनका आशीष लिया और एक से बढ़कर एक होली की प्रस्तुति दी। 15 वी शताब्दी में चंद राजाओं के दरबार से चली यह होली की परंपरा कुमाऊ गढ़वाल और देश के दूसरे कोनों में होते हुए अब विदेशों में भी अपनी अमिट छाप छोड़ती है । ब्रज की होली की परंपरा व राग रागिनी पर आधारित यह होली अपने आप में विशिष्ट पहचान रखती है। इस दौरान आलू के गुटके पहाड़ी चटनी का प्रसाद बांटा गया।
ग्रीष्मकालीन राजधानी पर जश्न
गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने पर भी सभी लोगों ने जश्न मनाया एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाया और प्रसाद वितरित किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से डॉ0 मथुरा दत्त जोशी, चार धाम विकास परिषद के अध्यक्ष शिवप्रसाद ममगाईं, अखिल गढ़वाल सभा के अध्यक्ष रोशन धस्माना कुर्माचल कल्याण और विकास परिषद के अध्यक्ष श्री कमल रजवार , हमारी पहचान रंगमंच के अध्यक्ष कैलाश चंद्र पाठक बबीता साह लोहनी, मदन जोशी, शेर सिंह बिष्ट ,पुष्पा बिष्ट आदि का विशेष सहयोग रहा।