दुनियाभर के घंटाघरों में शुमार दून का ऎतिहसिक घंटाघर

करीब बारह  साल बाद सुनी दून के घंटाघर की  टन टन आवाज

देहरादून, दून की धड़कन कहीं जाने वाले घंटा घर पर एक बार फिर से लगभग 12 साल बाद टन टन की आवाज सुनी गई। लंबे प्रयासों बात घंटाघर को नगर निगम प्रशासन की ओर से संवारने के प्रयास किए गए हैं। इसके लिए नगर निगम ने सरकार की एजेंसी ब्रिंकुल के साथ करार किया था। अब जाकर यह घंटाघर रेट्रो फिकेशन के जरिए रिनोवेट किया गया है। दर्शन देहरादून का घंटाघर उत्तराखंड के सबसे पुराने घंटा घरों में से एक है। घंटाघर अपनी दयनीय स्थिति के लिए पिछले कई सालों से बदहाली के कगार पर था नगर निगम ने इस को सजाने और संवारने के लिए 2007 में अपने प्रयास शुरू किए थे पुरानी घड़ी तकनीकी थी जिस पर लाखों रुपए का खर्चा आ रहा था। इसके बाद नगर निगम ने 2008 में घंटाघर की सूइयां चलाने के लिए दूसरे विकल्पों पर विचार किया वर्ष 2013 में हुडको के साथ आगे निकल गए। लेकिन सितंबर 2014 में इसके लिए छप्पन लाख ३६ हजार जीडीपीआर बनाए गए, लेकिन हुडको ने 4000000 रुपए पर हामी भर दी। लेकिन फंड क्लीयरेंस में निगम को परेशानी उठानी पड़ी। इस बीच ओएनजीसी के साथ बात आगे बढ़ी। ओवैसी ने हामी भरी। लेकिन कुछ पैसे निगम को भी शामिल करना था। वर्तमान में लगभग सावा करोड़ रुपए बताया गया है। अभी इसमें शामिल हैं वास्तुशिल्प सौंदर्यीकरण का काम है। लेकिन दूनवासियों खुश हैं कि घंटाघर पर जब हम और टन टन की भी सुनाई करेंगे। ३१ अगस्त को जब घंटघर की सूइयां तैयार हुईं, तो निगम और ब्रीडकुल के अधिकारियों के अलावा कई लोग बहुत खुश थे।

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देहरादून का घंटाघर ऊपर आपने आपने में अनोखा है, आपने चार घड़ी वाले घंटाघर ही देखे होंगे, लेकिन देहरादून के घंटाघर पर छह घड़ियां है। जोको षटकोर्णीय कहा जाता है। इस घंटाघर का निर्माण कार्य 1948 में लाला शेर सिंह और उनके ग्रामीणों ने अपने पिता स्वर्गीय लाला बलवीर सिंह की याद में बनवाना शुरू किया था घंटाघर को बनने में लगभग 4 साल का समय लगा 1952 में देहरादून का घंटाघर बन पूरा तरह से तैयार हो गया है तब तक तत्कालीन रक्षा मंत्री भारत सरकार लाल बहादुर शास्त्री ने घंटाघर का उद्घाटन किया था कि वक्त घंटाघर के सुई के 6 कांटे प्रशिक्षण से मंगाए गए थे वर्ष 2007 में तक। नीकी खराबी के घंटाघर की घड़ी खराब हो गई। पुरानी जने की मशीन और पुरानी तकनीक का उपचार न मिलने पर 2008 में नगर निगम के तत्कालीन मेयर विनोद चमोली ने घंटाघर की सुईंया चलाने पर दूसरे विकल्पों पर काफी की।

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